मंगलवार, 17 जुलाई 2018

आधुनिक भारत (पुर्तगालियों का भारत आगमन)

पुर्तगालियों का भारत आगमन: 
  • यद्यपि 15वीं शताब्दी में भारत में वास्कोडिगामा के आगमन से कई शताब्दी पूर्व यूरोपीय यात्री आते रहे थे, लेकिन केप ऑफ़ गुड़ होप होकर जब वास्कोडिगामा भारत पहुँचा, तो इसने भारतीय इतिहास की दिशा को गहरे प्रभावित किया | 
  • पश्चिम में अमेरिका के विपरीत, पूरब में यूरोपीय शक्तियाँ सीधे औपनिवेशीकरण की शुरुआत नहीं सकीं ऐसा करने में उन्हें समय लगा लेकिन  विकसित समुद्री शक्ति,तकनीक एवं अस्त्र के कारण उन्होंने तीव्रता से समुद्री शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित कर लिया | 
पुर्तगालियों का उद्देश्य :
  • ये भारत में व्यापार करने के करने के उद्देश्य से आये थे लेकिन भारत में ईसाई का प्रचार करना तथा भारतीयों को ईसाई  में परिवर्तित करना इनका दूसरा उद्देश्य था साथ में अपने प्रतिद्वंदी ख़ासकर अरब को बाहर खदेड़ कर पूर्वी व्यापार पर एकाधिकार कायम करना था | 
  • इस समय हिन्द महासागर के व्यापार पर अरब व्यापारियों का एकाधिकार था | इस कारण सर्वप्रथम पुर्तगालियों ने अरब नौपोतों को नष्ट किया, उनके जहाजों को लूटा और अन्य दमनात्मक कार्यवाही की। 
  • पुर्तगालियों की मजबूत स्थिति को देखते हुवे पुर्तगाल के शासक मैनुअल प्रथम ने अरब, भारत और फारस के साथ व्यापार  का स्वयं को मालिक घोषित कर दिया | 
तत्कालीन भारतीय स्थिति :
  • इस समय गुजरात  सिवा,जहाँ महमूद बेगड़ा का शासन था के अतिरिक्त पूरा भारत छोटी छोटी इकाइयों में बंटा हुआ था | दक्कन में बहमनी साम्राज्य छोटे छोटे राज्यों में विभक्त हो गया |  कोई भी शक्ति ऐसी नहीं थी जिसके पास नौसैनिक शक्ति हो, और न ही उन्होंने नौसैनिक शक्ति को विकसित करने का कोई प्रयास किया | 
  • जहाँ तक अरब व्यापारियों का सम्बन्ध है वे पुर्तगालियों की संगठित शक्ति का सामना नहीं कर सके | 
भारत आगमन के प्रेरक तत्व :
  • 15वीं शताब्दी में पुर्तगाली इटली के एक राज्य वेनिस से ईर्ष्या करने लगे थे और उसके लाभदायी व्यापार में हिस्सा पाने का हर संभव प्रयास कर रहे थे | वेनिस ने प्राचीन समय से यूरोप और भारत के व्यापर पर एकाधिकार बना रखा था  और बेपनाह धन सम्पदा एवं प्रभाव अर्जित कर रहा था | 
  • राजकुमार हेनरी जो एक पुर्तगाली नाविक था ने अपना पूरा जीवन भारत को जाने वाले समुद्री मार्ग की खोज में लगा दिया | 1487 में बर्थोलोम्यो दियाज नामक एक पुर्तगाली अफ्रीका के द० सिरे तक पहुँच गया इस जगह को केप ऑफ़ गुड़ होप कहा गया | यद्यपि 1488 में ये लिस्बन लौट आया और इसके लगभग 10 वर्षों के अंतराल के बाद 1498 में वास्कोडिगामा भारत पहुँचा | 
  • वास्कोडिगामा की लिस्बन में विजय वापसी पर, पुर्तगाल सम्राट ने पेड्रो अल्वारेज केबरेल के नेतृत्व में बर्थोलम्यो डियाज के साथ जहाजी बेडा भेजा | लेकिन केबरेल  को कालीकट में, जमोरिन को परास्त करने के लिए अरबों से युद्ध लड़ना पड़ा | कैब्रेल ने कोचीन और किन्नोर में व्यापार सुरक्षित करने हेतु कालीकट छोड़ दिया | यह काफी बड़े मुनाफे के साथ लिस्बन लौटा | 
  • 1502 में वास्कोडिगामा पुनः भारत आया इस बार इसके साथ व्यापार में विजय हेतु एक सुसज्जित नौसैनिक बेडा भेजा गया था | पूर्वी समुद्र तट में अपनी वाणिज्यिक प्रभुता हासिल करने के लिए पुर्तगालियों ने अरब व्यापारियों का उत्पीड़न करना प्रारम्भ कर दिया | 
  • पुर्तगाली एशिया के महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थलों फितोरिय़ा पर कब्ज़ा स्थापित करके  अपनी नौसेना की वर्चस्वता को कायम करना चाहते थे | फितोरिया ऐसे व्यापारिक स्थल होते थे जहाँ से नौसैनिक बेड़े को सहायता प्रदान की जाती थी | लेकिन कुछ दिनों बाद उनको ये आभास हुआ की भारत में इन अड्डों में कब्ज़ा करना आसान नहीं होगा इसके लिए उन्हें संघर्ष करना होगा | 
  • कालीकट के हिन्दू शासक को इन्होने आदेश दिया की वे अपने बंदरगाह से मुसलमान व्यापारियों को हटा दे लेकिन जमेरिन ने ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया तब पुर्तगालियों ने वहाँ गोलाबारी की | इसके बाद पुर्तगालियों ने बेहद चतुराई से कोचीन और कालीकट की शत्रुता का लाभ उठाया और कोचीन के राजा के मालाबार क्षेत्र में 1503 में अपना पहला किला बनाया | 
  भारत में पुर्तगाली साम्राज्य की शुरुवात :
  • भारत मे पुर्तगाली साम्राज्य 1505 से प्रारंभ हुआ जब पुर्तगालियों के सम्राट ने तीन वर्षों के लिए एक गवर्नर नियुक्त किया। नवनियुक्त गवर्नर फ्रांसिस्को दी अलमेडा को भारत मे पुर्तगालियों की स्थिति सुदृढ़ करने के लिए कहा गया और अदन, आर्मूज और मलक्का पर कब्जा करके अरब व्यापार बर्बाद करने का निर्देश दिया गया। उसे अन्जादिया, कोचीन, केन्नोर और किल्वा में किले बन्दी करने का भी आदेश दिया गया। 
  • 1503 में अलमेडा ने टर्की, गुजरात और मिस्र की संयुक्त सेना को पराजित करके दीव पर अधिकार कर लिया। दीव पर कब्जे के बाद पुर्तगाली हिन्द महासागर में अधिक शक्ति हो गए। 
  • अलमेडा के बाद अल्फांसो दी अल्बुकर्क कमांडर के रूप मे भारत आया। इसके पास एक व्यापक रणनीति थी वह अपनी मृत्यु से पूर्व पूरब में पुर्तगाली साम्राज्य की स्थापना का कार्य पूरा कर लेना चाहता था और इसने यह कार्य किया भी इसलिए इसे भारत मे पुर्तगाली सत्ता का वास्तविक संस्थापक भी कहा जाता है। 
  • 1503 में ये भारत आया और 1509 में इसे भारत का वायसराय नियुक्त किया गया। 1510 में इसने बीजापुर के शासक आदिलशाह से गोवा छीन कर ठोस शुरूआत की। कालांतर में गोवा ही भारत मे पुर्तगाली व्यापारिक केंद्रों की राजधानी बना। 
  • गोवा एक प्राकृतिक बंदरगाह भी था और एक सामरिक स्थल भी। इस कारण पुर्तगाली दमन, राजौरी और दाभोल पर कब्जा जमाने में भी सफल रहे। 
  • 1511 में अल्बुकर्क ने दo पूo एशिया की व्यापारिक मंडी मलक्का और हरमूज में भी अधिकार कर लिया। इसके समय में पुर्तगाल भारत मे एक शक्तिशाली नौसैनिक शक्ति के रूप मे स्थापित हुआ। 
  • इसने लाल सागर के मुहाने पर स्थित सोकोत्रा द्वीप, सुमात्रा के सचिन द्वीप तथा श्री लंका के कोलंबो में अपने नए किले स्थापित किए। जावा, थाईलैंड और पेगू से अपने संपर्क स्थापित किए। 1518 मे चीन के साचओ द्वीप पर अपनी बस्ती बसानी प्रारंभ की। 
  • अल्बुकर्क ने भारत मे पुर्तगालियों की संख्या में वृद्धि करने के लिए तथा उनको स्थाई बस्तियाँ बसाने के लिए निम्न वर्गीय पुर्तगालियों को भारतीय महिलाओं के साथ विवाह करने को प्रेरित किया तथा इसने अपनी सेना में भारतीयों की भर्ती की। 
  • 1529 में भारत आए पुर्तगाली वायसराय नींन डी कुन्हा ने 1530 मे कोचीन की जगह गोवा को अपनी राजधानी बनाया। इसने सेंटहोमा (मद्रास), हुगली (बंगाल) और दीव(काठियावाड) में पुर्तगाली बस्तियों की स्थापना की। इसके बाद वायसराय जोवा दी क्रेस्तो ने चाउल (1531) द्वीव (1532), सौलसेट और बेसिन (1536) और बम्बई पर अधिकार कर लिया। 
पुर्तगालियों का व्यापारिक प्रभुत्व :
  • पुर्तगालियों ने पूर्वी तट के साथ सीधा संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया। कोरोमंडल तट पर स्थित मूसलीपत्तनम, पुलिकट इत्यादि शहरों से वस्त्रादी वस्तुएं एकत्रित करते थे। मलक्का, मनीला इत्यादि पूर्वी क्षेत्रों से व्यापार करने के लिए नाग पत्तम पुर्तगालियों का एक प्रमुख बंदरगाह था। नागपत्तम के उत्तर में संतहोम में पुर्तगालियों की एक बस्ती थी। 
  • बंगाल के शासक महमूद शाह ने पुर्तगालियों को 1536 में चटगाँव और सतगाव मे फैक्ट्री खोलने की अनुमति प्रदान की। अकबर की अनुमति से हुगली और शाहजहां की अनुमति से बुंदेल में कारखाने खुले। 
  • पुर्तगालियों ने कार्टज आरमेडा काफिला पद्धति के द्वारा भारतीय और अरबी जहाजों को परमिट के बिना अरब सागर में प्रवेश वर्जित कर दिया। अरबी और भारतीय जहाजों को जिसको कार्टज प्राप्त होता था उसे कालीमिर्च और बारूद ले जाने की अनुमति नहीं थी। 
  • इनका प्रभाव इतना अधिक बढ़ गया था कि मुगल सम्राट अकबर को भी पुर्तगाल क्षेत्रों मे व्यापार करने के लिए परमिट लेना पड़ता था। इस समय पुर्तगालियों के पास ऐसी कोई वस्तु नहीं थी जिसका वे व्यापार ना करते हों। पूर्व की वस्तुओं के लिए वे पश्चिम से सोना, चांदी अन्य बहुमूल्य रत्न लाया करते थे। मालाबार और कोंकण तट से सबसे ज्यादा कालीमिर्च का निर्यात होता था. इसके अतिरिक्त अदरक, दालचीनी  हरड़, चंदन, हल्दी और नील का निर्यात होता था। इस प्रकार पुर्तगालियों ने इस समय व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया था। 
  • इनके आगमन से भारत मे तंबाकू की खेती, जहाज निर्माण और प्रिंटिंग प्रेस की शुरुवात हुई। 1556 में गोवा मे प्रथम प्रिंटिंग प्रेस स्थापित की गई। तथा भारत मे गोथिक स्थापत्य कला का आगमन हुआ। 
पुर्तगालियों की धार्मिक नीति:

  • यद्यपि व्यापारिक प्रभाव बढ़ने के बाद पुर्तगाली सम्राट को भारतीय गिरिजाघरों और मिशनों का संरक्षक बनाया गया लेकिन ऐसा तब हुआ जब 1542 में जेसूईट (रोमन कैथोलिक समाज का सदस्य) भारत आया। अकबर के दरबार में जेसूईटों ने अपना प्रभाव बनाया।
  • अकबर की धर्म और मीमांसा के प्रश्नों पर गहरी रुचि थी। इसलिए फादर जूलिएट परेरा से ईसाई धर्म का ज्ञान प्राप्त किया। इसने अकबर को और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्सुक किया जिससे अकबर ने गोवा से धर्म  मीमांसक बुलाने का निश्चय किया जो उसकी शंकाओं का समाधान कर सके। इसके लिए अकबर ने गोवा के अधिकारियों को पत्र भेजकर दो विद्वान पादरी भेजने का निवेदन किया। गोवा के चर्च अधिकारियों उत्सुकता पूर्वक इस निमंत्रण को स्वीकार किया व 28 फरवरी 1580 को दो पादरी रोडक्लाफओ एक्वावाईवा और एंटोनियो मन्‍सरेट फतेहपुर सीकरी पहुंचे जो 1583 मे वापस लौटे। इसी प्रकार अकबर ने दूसरा मिशन 1590 को और तीसरा मिशन 1595 में बुलाया।
  • किंतु मिशनरी ना तो अकबर को और ना ही उसके किसी दरबारी को ईसाई मत में परिवर्तित कर सके. जिससे यह स्पष्ट होता है कि अकबर का पादरियों में ध्यान देना किसी धार्मिक उत्साह का परिणाम नहीं था अपितु यह पुर्तगाली सैन्य सहायता सुनिश्चित करने की इच्छा से हो रहा था। इसलिए 1601 मे सभी दिखावों और बहानों को छोड़ते हुवे अकबर ने गोवा मे सैन्य सहायता के लिए एक दूत भेजा। पुर्तगाली अधिकारियों ने शुरू से चलने वाले इस खेल को समझते हुवे नम्रता पूर्वक मना कर दिया।
  • अकबर के बाद जहाँगीर ने जेसूईटों की उपेछा करके मुसलमानों को शांत किया किन्तु धीरे धीरे 1606 में उसने फिर से उन्हे समर्थन देना शुरू कर दिया। लाहौर में एक भव्य विशाल चर्च को पादरी आवास बनाए रखने की अनुमति दी गई। 1608 में आगरा में 20 दीक्षा स्थान (बपतिस्मा) आयोजित किए गए, और पादरियों को पुर्तगाल जितनी ही कार्य की स्वतंत्रता दी गई। गलियों और सड़कों में पूरे कैथोलिक रीति रिवाज से चर्च के जुलूस निकालने की अनुमति दी गई और धर्मान्तरित लोगों को खजाने से नगद सहायता दी गई।
  • जहाँगीर का व्यवहार ऐसा था कि जेसूइट पादरी उसे ईसाई मत में लाने के प्रति आशावान हो गए। लेकिन जहांगीर की यह नीति भी राजनैतिक उद्देश्य से प्रेरित थी।
अंग्रेजों के प्रति शत्रुता :
  • 1608 में कप्तान हॉकिन्स सूरत आया वह अपने साथ भारत मे व्यापार करने की अनुमति हेतु इंग्लैंड के सम्राट जेम्स प्रथम का जहांगीर के नाम एक प्रार्थना पत्र लाया था।
  • पुर्तगाली अधिकारियों ने हाॅकिन्स को मुगल दरबार में पहुँचने से रोकने का भरसक प्रयत्न किया लेकिन सफल नहीं हुए। जहाँगीर ने हाॅकिन्स द्वारा लाए हुए उपहारों को स्वीकार किया तथा खुश होकर 400 मनसब का मानसबदार नियुक्त किया।
  • हाॅकिन्स और अन्य अंग्रेजी लोगो को बड़ी व्यापारिक सुविधाएं प्रदान करने को गोवा के वायसराय डॉन मेंडोसा ने इसे अतिक्रमण माना और इसे शत्रुता पूर्ण करवाही कहा। भारत मे पुर्तगालियों और जहाँगीर की युद्ध जैसी स्थिति को देखते हुए मेंडोसा ने मुगल दूत मुबारक खान से मिलने से इंकार कर दिया। उतावलेपन मे उठाए इस कदम ने पुर्तगाली व्यापार को बहुत प्रभावित किया जहाँगीर ने पुर्तगालियों को दी जाने वाली सभी छूट में रोक लगा दी। तब मेंडोसा ने मुबारक खान से बातचीत का प्रस्ताव रखा और शांति स्थापित करने की बात की। इसके पश्चात आपसी कटुता समाप्त हुई और अंग्रेजी जहाज को सूरत के पत्तन में आने की अनुमति नहीं दी गई। व्यथित हाॅकिन्स ने 1611 में मुगल दरबार छोड़ दिया।
  • अंग्रेजों ने 1612 में पुर्तगालियों के विरुध्द प्रतिशोध लिया। नवम्बर 1612 में अंग्रेजी जहाज ड्रेगन ने पुर्तगाली जहाजी बेड़े के साथ युद्ध किया। जिसमे अंग्रेजो को सफलता मिली इससे जहाँगीर अंग्रेजों से बहुत प्रभावित हुआ। पुर्तगालियों ने अपनी बचकानी हरकतों से जहाँगीर को अप्रसन्न कर दिया। वी. ए. स्मिथ के अनुसार पुर्तगालियों ने मुगल सरकार के चार इंपीरियल जहाजों को जब्त कर लिया और कई मुसलमानों को बन्दी बना लिया गुस्साए जहाँगीर ने मुबारक खान को क्षति पूर्ति वसूलने का आदेश दे दिया। इससे पुर्तगालियों की प्रतिष्ठा को हानि पहुंची।
  • जहाँगीर के बाद शहजहाँ के काल मे मुगल दरबार से मिलने वाले लाभों का पूरी तरह से अंत हो गया।
पुर्तगालियों के पतन के कारण :
  • पुर्तगाल स्पेन के साथ जुड़ गया जिससे स्पेन के पतन के साथ इसका भी पतन हो गया। 
  • 1588 में नौसेना के युद्ध में अंग्रेजों ने स्पेन को करारी शिकस्त दी इसके बाद स्पेन की नौसैनिक शक्ति टूट गई।
  • पुर्तगाल में सम्राट निरंकुश था। 
  • धर्म के मामले मे पुर्तगाली असहिष्णु थे कई स्थानों में उन्होने लोगों का जबरन धर्मांतरण किया।
  • पुर्तगालियों ने स्वयं को व्यापार के मुनाफा तक ही सीमित रखा। 
  • इन्होने डकैती और लूटमार की नीति अपनाई। 
  • ब्राजील की खोज के बाद इन्होने भारत मे कम ध्यान दिया। 
  • पुर्तगाल में इनके उद्योग धंधे विकसित नहीं हो पाए ये केवल वितरित रूप से कार्य करते रहे। 
  • पुर्तगाली व्यापारियों पर पुर्तगाली राजा का आवश्यकता से अधिक नियंत्रण था। 

1 टिप्पणी:

  1. व्यापार को सुरक्षित करने के लिए कालीकट छोड़ दिया. कैसे व्यापार को सुरक्षित करने के लिए छोड़ा समझाए सर.

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